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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।

अथवा
घनानन्द के काव्य-सौष्ठव के विषय में अपना विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
"काव्य वस्तु और उसकी अभिव्यक्ति दोनों ही दृष्टियों से घनानन्द एक उच्चकोटि के कवि थे।' इस उक्ति के प्रकाश में घनानन्द के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

रीतिकालीन कविता के विभिन्न तीन अंग हैं-

(1) रीतिबद्ध कविता
(2) रीति सिद्ध कविता
(3) रीतिमुक्त या स्वच्छन्दतावादी कविता।

रीतिबद्ध कविता के कवियों में केशव देव मतिराम आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन कवियों ने कविता के विभिन्न स्वरूपों के सैद्धान्तिक निरूपण उचित उदाहरणों के माध्यम से पुष्ट किया। रीतिसिद्ध कविता के कवियो में बिहारी का नाम सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय है। इस कविता के रचनाकारों ने कविता के विभिन्न स्वरूपों के कोई सैद्धान्तिक निरूपण तो नहीं प्रस्तुत किया, लेकिन इसके ही आधार पर काव्य रचनाएं की रीतिमुक्त कविता के कवियों में घनानन्द का नाम सर्वाधिक और सर्वोच्च है। इस कविता धारा के कवियों ने काव्य के विभिन्न स्वरूपों का सैद्धान्तिक निरूपण ही किया और न काव्य-रचना करते समय उन्हें अपने ध्येय में ही रखा।

रीतिमुक्त कवियों के गुण - आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार, "स्वछन्द कवि हृदय की दौड़ के लिए राजमार्ग चाहते थे, रीति की सँकरी गली में धक्कम धक्का करना नहीं। ये कविता की नपी- तुली नाली खोलने वाले न थे। ये काव्य का उत्स प्रवाहित करने वाले या मानस रस का उन्मुख दान देने वाले थे।

रीतिमुक्त काव्यधारा के कवियों के गुणों का उल्लेख करते हुए डॉ. शिव कुमार शर्मा का कथन है "इनके काव्यों में भाव पक्ष की प्रधानता है। इनकी शैली अलंकारों के आवश्यक बोझ से भी आक्रांत नहीं हुई है। भाषा के क्षेत्र में भी ये लोग अधिक सफाई से उतरे हैं। इनके काव्यों में सामाजिकता की अवहेलना भी नहीं है और न ही नग्न श्रृंगारिकता। इनका श्रृंगार चित्रण अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ, संयत और स्वच्छ है।

रीतिकालीन कविता पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर यह सार रूप में कहा जाता है कि रीतिकालीन कवियों के लिए कविता साधन थी और उनका अपनी तीव्र भावाभिव्यक्ति का विस्तृत चित्रण करना ही साध्य था। कविवर घनानन्द इसके अपवाद नहीं हैं। कविवर घनानन्द की काव्यधारा में अनुभूति पक्ष और अभिव्यक्ति पक्ष दोनों की ही प्रधानता है। यहाँ पर हम दोनों ही पक्षों में विभिन्न प्रकार से विचार करना समीचीन समझते हैं -

1. अनुभूति पक्ष एवं भाव पक्ष - कविवर घनानन्द के काव्य में भावना की अत्यधिक प्रधानता है। कवि ने अपनी अनुभूति को बहुत ही सूक्ष्मता और गम्भीरतापूर्वक चित्रित किया है। कवि ने अपनी अभिव्यंजना शैली के विषय में इस विचार को व्यक्त किया है -

"लोग हैं लागि कवित्त बनावत।
मोहिं तो मेरे कवित्त बनावत॥"

अर्थात और कवि तो अत्यन्त प्रयत्न करके कविता करते हैं, लेकिन मेरी काव्य रचना तो मेरी भावना से अंकुरित होकर ही प्रस्फुटित होती है। कविवर घनानन्द की अनुभूति पक्षीय या भावपक्षीय निम्नलिखित विशेषता इस प्रकार है -

क - प्रेम की अभिव्यंजना - कविवर घनानंद का काव्यांश सच्चे प्रेम का प्रतिष्ठापक है। इसमें साधिकारपूर्वक अपने मंतव्य को कवि ने अपनी अनन्य प्रेयसी के माध्यम से व्यक्त किया है। यह प्रेम का मार्ग बन्धन विहीन मार्ग है। एकान्तिक एकनिष्ठ और एकांगी है। इसमें प्रेम की वक्रता और ऋणुता के साथ-साथ चतुराई और सन्देह को कोई भी स्थान नहीं है।

"अति सूधो सनेह को मारग है।
जहाँ नेकु समानय बाँक नहीं॥
जहां सांचे चले तजि आपनयो।
मझकै कपटी जेनिसांक नहीं।"

ख - एकपक्षीय प्रेम की प्रधानता - प्रेम के सच्चे अलख जगाने वाले कविवर घनानन्द ने प्रेम का कोई न कोई एक मधुर और हृदयग्राही चित्र प्रस्तुत किया है। इस प्रकार के प्रेम की प्रेरक शक्ति कवि की अनन्य प्रेयसी सुजान ही रही है -

"चाहो, अनचाहो जन प्यारे पै घनानन्द।
प्रीति रीति विषम जु रोम-रोम रमी है।'

इसी प्रकार के अन्य उदाहरण और दिये जा सकते हैं, जिनसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि कविवर घनानन्द ने अपनी काव्य रचनाओं में एकपक्षीय प्रेम की प्रधानता आकर्षक और स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत की है-

ग - सौन्दर्य चित्रण - घनानन्द ने अपनी प्राण प्रिया के रूप और सौन्दर्य के कितने ही मनोहारी चित्र अंकित किये हैं। प्रत्येक अंग के अलग-अलग चित्रण के स्थान पर सम्पूर्ण अंगों की रमणीयता ही उसमें दिखाई गयी है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में - घनानन्द के इन सौन्दर्य चित्रों में सुजान का रूप उसका लावण्य, उसका यौवन, उसकी छवि उसकी कांति, उसकी अंक दीप्ति आदि मानो साकार हो उठी है ये सभी चित्र गत्यात्मक सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं, जिसमें संश्लिष्टता है, मादकता है, अतिशयता है और रूप कवि का कितना मोहक चित्र घनानन्द ने प्रस्तुत किया है -

"मलकै अति सुन्दर आनन गौर,
छके दृग राजति काननि ह्वै।
हँसि बोलनि मैं छवि फूलन की,
वरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।
लट लोल कपोल कपोल करें,
कलकंठ बनी जलजावालि है।
अंग-अंग तरंग उठै दुति की,
परिहै मनी रूप अबै घर चलै।"

घ - संयमित संयोग वर्णन - घनानन्द के काव्य में संयोग श्रृंगार की भी अंकन हुआ है, किन्तु संयोग क्षण कम रहने के कारण इस प्रकार के चित्र कम ही हैं। जहाँ कहीं संयोग का चित्रण हुआ है, वहाँ उन्होंने प्रिय के शारीरिक अंगों तथा केलि-क्रीडा के अनेक रूपों को अंकन करने के स्थान पर प्रिय के रूप और गुणों का अंकन किया है। इसी कारण इनमें संयम, भावना प्रधानता तथा पवित्रता अधिक है। एक विचित्रता यह भी है कि वे संयोग के साथ भी वियोग की आशंका से ग्रस्त रहते हैं -

"यह कैसे संजोग न बूझि परै।
कि वियोग न क्यौ हूँ विछोहत है।"

ङ - वियोग वर्णन - घनानन्द मुख्यतया वियोग श्रृंगार के कवि हैं। इनके काव्य में वियोग का परिपाक मार्मिकता और सजीवता से हुआ है। उनके हृदय में व्याप्त वियोग की कल्पना सहज नहीं है, जो संयोग में भी वियोग की आशंका से ग्रस्त रहता है उनकी व्यथा इतनी मार्मिक है कि शीतल उपादान भी उन्हें दग्ध करते प्रतीत होते हैं, सोने के समय नींद नहीं आती, जगने पर जाग नहीं पाते, औषधि भी विष के समान लगती है --

"सुधा से स्रक्त विष, फूल में जगत सूल,
हम उगिलत चंदा भई नई रीति है।
जल जारे अंग और राम कर सुरभंग
सम्पत्ति विपत्ति दाग बड़ी विपरीति है॥
महागुन गहै दोऐ औषधि हूँ रोग पौषे,
ऐसे जान ! रस माहिं बिरस अनीति है।
दिनन को फेर माहि तुम मन फेरि डार्यो
एहो घनआनन्द ! न कानौं कैसे बीति है।'

यों तो वियोग के चार भेद बताए गये हैं - पूर्वराग, मान, प्रवास और रौद्र-करुण। इनमें प्रिय के निर्मोही और निष्ठुर व्यक्तित्व पर कविवर घनानन्द ने बहुत अधिक प्रकाश डाला है। यह ध्यान देने का विषय है कि कवि ने इस प्रकार के वियोग से सम्बन्धित प्रभाव और दशाओं के चित्रों को किसी प्रकार के ऊहात्मकता और अतिशयोक्ति की पूर्णता से सर्वथा अलग रखा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस सम्बन्ध में लिखा है -

"यद्यपि उन्होंने संयोग और वियोग दोनों पक्षों को लिया है पर वियोग की अन्तर्दशाओं की ओर ही उनकी अन्तर्दृष्टि अधिक गई है। इसी से इनके वियोग वर्णन के पद अधिक प्रसिद्ध हैं। वियोग वर्णन भी अधिकतर अन्तर्वृत्ति निरूपक ही है। ब्राह्मार्थ निरूपक नहीं। घनानन्द ने न तो बिहारी की तरह ताप को बाहरी मान से मापा है, न बाहरी उछल-कूद दिखाई है, जो कुछ हलचल है, वह भीतर की है।

च - भक्ति भावना - कविवर घनानन्द ने अपनी काव्य रचनाओं में भक्ति भावना को हृदयहारी और स्वाभाविक स्थान दिया है। लौकिक प्रेमिका का उत्कण्ठा भरा प्रेम स्वरूप ही कवि की मधुर भक्ति धारा के रूप में प्रवाहित हुआ है। कवि की भक्ति अनन्य प्रेम और एकनिष्ठता को व्यक्त करने वाली है। इसमें तीव्रता और स्वच्छन्दता है, यह चातक और मीन की प्रतीकात्मक है। इस प्रकार की भक्ति भावना को कवि ने अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा के साथ व्यक्त किया है। इस सम्बन्ध में कवि द्वारा प्रस्तुत एक उदाहरण इस प्रकार से है -

"तुम ही गति हो, तुम ही गति हो,
तुम ही पति हो, अति दीनन की।
नित प्रीति करौ गुनहीनन सौं,
यह रीति सुजान प्रवीनन की।
बरसौ घनआनन्द जीवन की,
सरसी सुधि चातक छीनन की।
मृदु तौ चित के पन पैहत के -
निधि हौ हित के रुचि मीनन की॥'

छ - प्रकृति चित्रण - कविवर घनानन्द ने प्रकृति के उद्दीपन स्वरूप के चित्र प्रस्तुत किये हैं। अत्यधिक विरह प्रधान भावों के कारण ही कवि द्वारा प्रस्तुत प्रकृति विरह की उद्दीप्ता को ही प्रकट करने वाली है। एक उदाहरण इस प्रकार है -

"लहकि- लहकि आवैं ज्यौ ज्यौ पुरवाई दौन,
दहकि दहकि त्यों-त्यों तन ताँवरे तचै।
बहकि- बहकि जात बदरा त्रिलोके हियौ,
गहकि गहकि गहबरनि गरेँ मचै॥
चहकि चहकि डारै चपला चखनि चाहै,
कैसे घनआनन्द सुनान तिन ज्यौ बचें
महकि महकि मारे पावस-प्रसून बस,
त्रासिन उसाब दैया कौ लौं रहियै अचै।'

2. कला पक्ष और अभिव्यक्ति पक्ष - कविवर घनानन्द का कला पक्ष या अभिव्यक्ति पक्ष, भाव पक्ष या अनुभूति पक्ष के समान ही सबल है। इसमें विविधता और समृद्धिता है। इस तरह से इसमें प्रौढ़ता और सशक्तता भी है। इस पद की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रमुख हैं, जो सुधीजनों को बाबस ही आकर्षित कर लेती हैं इस अभिव्यक्ति पक्ष के अन्तर्गत भाषा शब्द, सूक्तियाँ, मुहावरे, कहावतें, अलंकार, छंद आदि प्रयोगों की अद्भुत विशेषताएँ हैं इनका क्रमशः उल्लेख किया जा रहा है -

(क) भाषा - घनानन्द की भाषा में लाक्षणिकता, वचनवक्रता, प्रांजलता तथा रमणीयता आदि गुण पूर्ण रूप से प्रस्फुटित हुए हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है “भाषा पर जैसा अचूक अधिकार इनका था, वैसा और किसी कवि का नहीं। भाषा मानों इनके हृदय के साथ जुड़कर ऐसी वशवर्तिनी हो गयी थी कि ये उसे अपनी अनूठी भावभंगिमा के साथ-साथ जिस रूप में चाहते थे, उस रूप में मोड़ सकते थे। इनके हृदय का योग पाकर भाषा को नवीन गतिविधियों का अभ्यास हुआ और वह पहले से कहीं अधिक बलवती दिखाई पड़ी।'

घनानन्द ने बड़ी सफाई और सुन्दरता के साथ ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। ब्रजभाषा पर ऐसा अधिकार अन्य किसी कवि का दिखाई नहीं देता। उनकी भाषा में उक्ति चमत्कार पर्याप्त मात्रा में है।

घनानन्द की कविताओं के प्रसिद्ध प्रशंसक ब्रजनाथ की दृष्टि में घनानन्द की भाषा के गुण इस प्रकार हैं- क्रांति, गांभीर्य और विविध प्रकार की अर्थवत्ता, साधना सापेक्षता, सुन्दरता, स्वच्छता, एकरूपता या सांचे में ढला हुआ होना, सुघड़ता, अनूठापन और गूढ़ता। उनकी इस प्रकार की भाषा को तथा उसके सौन्दर्य को वही समझ सकता है, जो भाषा में प्रवीण है।

"नेही महा ब्रजभाषा और सुन्दरतानि के भेद को जाने,
जोग वियोग की रीति मैं कोविद्, भावना मंद स्वरूप का ठानै।
चाह के रंग में भीज्यौ हिये, बिछुरें मिलें प्रीतम साँति न मानै,
भाषा-प्रवीन सुद्ध सदा रहै, सो छन जी के कवित्त बखाने।'

(ख) शब्द प्रयोग - घनानन्द को 'भाषा प्रवीन' कहा गया है। इसकी पुष्टि घनानन्द के शब्द समूह से भी की जा सकती है। घनानन्द ने पंकज, कुटंग मलय, विभावर, दिनेश, हृदय, तर्क आदि तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया है। घनानन्द के काव्य में सर्वाधिक प्रयोग तत्सम शब्दों का है, उदाहरणार्थ - परंजक, जनत, पिहुर, दीठि, उदेग, ईछन, पदारथ जतन निसि निदेश सभी आदि। देशज शब्दों में - डैस, ढोबा, अखीली, विशेषतः उल्लेखनीय है। अरबी, फारसी के शब्दों में इस्क, चस्माँ, महबूब चिमल, बेदरद, करद, तीर-कमान, तकसीर कहर, जरद, दुसाला, मगरूरी हुकम, हुजूर, खतर यार, हुसन, सराबी जिगर, बेनिसाफ, इलम, दिलदार जहर आदि शब्द उल्लेखनीय हैं।

3. शब्द शक्ति - घनानन्द के काव्य में अमिधा की अपेक्षा लक्षणा और व्यंजना की प्रधानता है। उन्होंने उक्ति चमत्कार, भावों की सघनता तथा सरसता के लिये पर्याप्त लाक्षणिक प्रयोग किये। यथा -

"मीत सुजान अनीत की पाये।
इहै पै न जानिये कौनै पढ़ाई।'
व्यंजना का भी एक उदाहरण प्रस्तुत है -

(4) सूक्तियों के प्रयोग

"कबहूँ वा विसासी सुजान के आँगन।
मो अँसुतानि हूँ लै बरसौं।'

कविवर घनानन्द ने विभिन्न प्रकार की सूक्तियों के प्रयोग भाषा को रोचक और सरल बनाने के अभिप्राय से किये हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस महाकवि ने अपनी इच्छा और भावना के अनुसार भाषा को विभिन्न मोड़ दिये हैं। कवि की उक्तियों की भंगिमाएं एक प्रकार से दुर्लभ ही दिखाई देती हैं। कवि द्वारा प्रयुक्त की गयीं विभिन्न प्रकार की सूक्तियाँ निम्न प्रकार से हैं -

(क) धुरि आरस की पास उपास गरैजू परीसु मरैहुँ कहा छुटि है
(ख) घनानन्द जीवन मूल सुजान की कौंध निहूँ बरसै।
(ग) अंग-अंग तरंग उठै दुति की परि है भगौरूप अलै छर चलै।
(घ) हाँसी बोलन में फूलन की बरख डर ऊपर जाति है है।

उनकी उक्तियाँ मानो की अभिव्यंजना में योग देती है -

(क) तुम कौन रौं पाठी पढ़े हौ लला,
        मन लेहु पै देहुँ छटाँव नहीं।
(ख) मीत दौरी शक्ति न लगै ठिक ठौर,
        अमोही के मोह मिठास ठगी।

(5) कहावतें और मुहावरे - जहाँ-जहाँ कवि ने कहावतों और मुहावरों को लिया है, वहाँ वहाँ की भाषा काव्य कला के लिए विशिष्ट चमत्कारों से सजी हुई है। कहावतों से बढ़कर कवि ने मुहावरों के प्रयोग किये हैं। एक कहावत का उदाहरण इस प्रकार है -

"सुनी है कै नाही यह प्रगट कहावत जू।
काहू कलाई है सु कैसे कलपाई है।'

विष घोलना, छाए रहना, पाटी पढ़ना आदि प्रचलित मुहावरे के प्रयोग कवि ने प्रायः किए हैं। इससे भाषा में न केवल सजीवता अपितु सम्प्रेषणता के गुण भी उत्पन्न हुए हैं।

(6) अलंकार - महाकवि घनानन्द ने प्रायः सभी प्रकार के अलंकारों के प्रयोग में अपनी पटुता दिखाई है। आपके अलंकार प्रयोग की सर्वाधिक विशेषता यह है कि ये अलंकार परम्परागत प्रयोग से बिल्कुल हटकर हैं। दूसरी बात यह है कि ये सहज और अनायास रूप में प्रयुक्त हुए हैं। कुछ प्रमुख अलंकारों के उदाहरण इस प्रकार से हैं -

घनानन्द के अनुप्रास सजीव संगीत की सृष्टि करने में अत्यधिक सफल हैं, यही कारण है कि कवि की अभिव्यक्ति और भी ललित बन पड़ी है -

छेकानुप्रास -
मंजुल बंजुल पुंज- निकुंज अछैह छवीसो महारस मेहते।
मौस मैं रेन सो चौन को ऐन पै जोति जग्यौ
जगि दम्पत्ति देहतें।

(7) श्लेष - घनानन्द के काव्य में 'श्लेष' अलंकार का विशेष प्रयोग मिलता है। विशेषतः जान, सुजान तथा 'घनानन्द' शब्द प्रायः श्लिष्ट ही है। श्लेष का एक विशिष्ट उदाहरण इस प्रकार है -

"आई है दीवारी काजनि जितारी प्यारी,
खेलै मिल जूता पैज पूरे दाव आताहिं।
हारहिं उतारि जीतै मीत घन लच्छिन सों,
चोप चद्वै नैन-तुहल मचावहीं॥'

यह हारहिं शब्द श्लिष्ट है, इसके दो अर्थ हैं - माला तथा पराजय। इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण दृष्टव्य है -

"घनाआनन्द प्यारे सुजान, मुजान खुजो इत एकतें दूसरों आंक नहीं।
तुम कौन हौं पाटी पढ़े हो लला मन लेहु पै देहुँ छटांक नहीं।'

यहाँ आँक के दो अर्थ हैं - अंक, चिन्ह। मन हृदय और 40 सेर। छटाँक - शेर का सोलवाँ भाग, शारीरिक विभा की झलक कटाक्ष।

(8) यमक -
उमगि उमगि घनआनन्द मुरलिका मैं।
गौरी गाय ढौरी सों बुलावै गौरी गाय को॥
गौरी गाय शब्द के क्रमशः अर्थ-रागिनी विशेष और गौर वर्ण की गाय है।

इसी प्रकार से अन्य प्रमुख अलंकार की सर्वथा सार्थक और उपयुक्त रूप में आए हैं। जैसे -

(क) व्यतिरेक-
"देखें अनदेखें तही अरक्यौ आनन्दघन।
ऐसी गति कहौ कहा चंबुक औलोह की।'

(ख) उपमा -
"लाली अधरान की रचिर मुस्क्यान समै।
सब मुख भोर ही बिंदूरा को सो फल है।'

(ग) विशेषाक्ति-
"कैसे धरौं धीर वीर अति ही असाधि पीर।
जयन हों रोग याहि नीके करि टोह की॥'

(घ) उत्प्रेक्षा -
"मानौं घनआनन्द सिंगार रस सों सँवारि।
चिक में विलोकति बदरि रजनीस की॥'

(9) छन्द विधान - घनआनन्द ने कवित्त और सवैया इन दो छन्दों को सर्वाधिक अपनाया। इनके छन्दों में किसी प्रकार का दोष नहीं है। रीतिकालीन मतिराम और देव जैसे सफल कवियों में भी छंद-विषयक दोष पाये जाते हैं। इनके कवित्तों की मस्तानी चाल पर शुक्ल जी विभोर हो उठे थे। 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि उनके काव्य के दोनों पक्ष उन्नत तथा भव्य हैं। कवि ने अपने काव्य में कला पक्ष को भिन्न करके नहीं देखा, वह तो उनके भाव पक्ष का ही सहायक रहा है। उनके सम्पूर्ण काव्य में भाव की उच्चता के साथ-साथ भाषा, अलंकार, अनुप्रास तथा अन्य उपकरणों को ही घनानन्द ने मात व्यंजना के लिए अपनाया है। उनका काव्य उनके हृदय के सरल उद्गार मात्र ही थे उनकी सन्तुष्टि दृष्टि के फलस्वरूप उनका अनूठा काव्य वैभव उनको रीतिकालीन कवियों की कोटि से पृथक कर देता है। इसीलिए तो घनानन्द को रीतिकाल के स्वच्छंदतावादी कवियों की अनुपम माला का बहुमूल्य मोती स्वीकार किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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